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चन्द्रवंशी क्षत्रिय (रवानी) एक परिचय

चन्द्रदेव के वंशज को ही चन्द्रवंशी कहा जाता हैं। सृष्टि के आरम्भ में परमपिता परमात्मा ब्रह्मा जी के तीन मानसपुत्र हुए, जिनमें एक पुत्र राजा दक्ष (माता सती के पिता), दूसरा स्वायंभुवः (प्रथम मनु) और तृतीय पुत्र  महर्षि अत्रि हुए जो परमात्मा ब्रह्मा जी के नेत्र के अश्रु से उत्पन्न हुए  थे (पुराण में वर्णित अनुसार), परमात्मा ब्रह्मा जी के नेत्र के अश्रु से  उत्पन्न होने के कारण इनका अत्रि नाम पड़ा। अत्रि जी महान तपस्वी बनें एवम् ऋषियों में महान (श्रेष्ठ) होने के कारण ये महर्षि अत्रि के नाम से  प्रसिद्ध हुए। इनका विवाह देवी अनुसुईया से हुआ था, यह वही देवी अनुसुइया  हैं, जिनके ज्ञान, बुद्धि एवं पतिव्रता के परीक्षा स्वम् परमात्मा ब्रह्मा,  विष्णु एवम् शंकर ने लिये थे और माता अनुसुइया ने इन तीनों को शिशु रूप  में होने के लिए कहकर इनका सेवा एक माता के रूप में किये जिसके फलस्वरूप  त्रिदेव ने इन्हें अपने जैसे त्रिमुख पुत्र प्रदान किये, जो प्रत्येक रूप,  गुण एवम् देवत्व में त्रिदेव के समान हैं, इन्हें परमात्मा दत्तात्रेय के  नाम से जाना जाता हैं। ये आज भी धरती पर सूक्ष्मरूप में विराजमान है और  अपने भक्तों का कल्याण करते रहते हैं। भगवान दत्तात्रेय चंद्रवशियों के  गोत्र भी हैं। समस्त चंद्रवंशी को परमात्मा के दत्तात्रेय रूप की पूजा  आराधना करनी चाहिये, ये बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देव है और कलयुग में  धरती पर प्रभावशाली भी हैं। आज भी दक्षिण भारत में इनकी पूजा आराधना बहुत ही धूम धाम से किया जाता है।

एक बार महर्षि अत्रि तपस्या कर रहे थे और इनके नेत्रों में जल भर आया और  इसी जल को परमात्मा ब्रह्मा जी ने बहुत ही सुंदर, मोहक, शीतल (मन को शांति  प्रदान करनेवाला), शक्तिशाली और बुद्धिमान तथा ज्ञानी पुरुष में परिवर्तित  कर दिए और इनका नाम चंद्र पड़ा और आज धरती के उपग्रह के नाम से पहचाना जाता हैं। इन्ही चंद्रदेव के पुत्र बुद्ध हुए, जिन्होंने चन्द्रवंश की स्थापना किये।

चन्द्रवंश में आदिकाल से ही बहुत महान और शक्तिशाली शासक हुये और सत्य युग,  त्रेता युग, द्वापर युग में राज किये। चंद्रवंशी राजाओं में ही राजा  दुष्यंत के पुत्र भरत हुये, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा।  द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय चंद्रवंशी राजाओं में एक महान शासक थे  राजा जरासंध, जिनके बारे में समस्त चन्द्रवंशी परिचित हैं। राजा जरासंध ने ही प्रथम बार सभी छोटे छोटे राज्यों को मिलाकर एक बड़ा देश बनाने की अभियान शुरू किये थे, इसी क्रम में मगध राज्य की स्थापना हुआ था। इसी कारण से इन्हें मगध प्रान्त के प्रथम सम्राट की उपाधि प्राप्त हैं। सम्राट जरासंध बहुत शक्तिशाली और कई कलाओं में निपुण थे जिनमें, पहलवानी, युद्ध कला, शिल्पकला, प्रशासक, इत्यादि से युक्त और दैवीय शक्ति से भी युक्त थे, जिसके कारण इन्हें हारा पाना देवताओ के लिये भी असंभव था। सम्राट जरासंध बहुत बड़े दानी एवम् शिवभक्त थे।

यद्यपि द्वापर युग के अंत में भगवान् नारायण विष्णु जी संहारक पुरुष के रूप में अवतरित हुए थे और सृष्टि के अंत में सभी दैवीय मानस शक्ति को हटाने के क्रम में सम्राट जरासंध को छल से मरवा दिए। इसके बाद चन्द्रवंश में  शक्तिशाली राजाओं का अंत हो गया और साथ ही चंद्रवंशियों के बुरे वक्त की  शुरुआत हो गयी।